आस्था रखूँ ख़ुदा पे, या खुद पे करूँ यक़ीन,
ख़ुदा ने ना दी आशीष कभी, ना दी कभी ख़ुशी,
क्यों याद रखूँ मैं, जो कभी शीश नमाए तेरे दर पे,
दिल लिए ख़ुशी की चाहत, इक भूल किया था कभी,
तेरी अनुग्रह है तेरे जैसी, जो सिर्फ़ हो अपनों की,
मेरी गलती छोटी सीं, जो रखी आस्था मैंने तुझपे,
अब भूल कर भी भूल से, ये सर ना झुकेगा कभी,
जी लूँगा जीवन मेरा, है मुझे अब खुद पे यक़ीन,
देर नहीं है अब कोई, सोचा आकर अब पूछूँ मैं,
क्यों ना दी मेरी ख़ुशियाँ, बोए मेरे रास्ते पे पनस.
कुणाल कुमार