ये नफ़रत की दुनिया, जो बसी मेरे दिल में ,
जिसे चाहु दिल से, मिली नफ़रत मुझे उससे,
एक साथी चाहा मैंने, जो समझ सके मुझे,
कुछ यादें बाँट सकूँ मैं, जो दिल से मैं अपने,
नफ़रत बने निराली, घनघोर घटा सी काली,
सोच को ये करे गंदा, ये चरित्र को करे नंगा,
सोचूँ क्या मैं कभी ऐसा था, जीवन मेरा कैसा था,
नफ़रत जब से घर कर आई, मुझे सदा ही रुलाई,
ये नफ़रत मुझे ना भाई, मुझे ये सदा दी तन्हाई,
छोड़ ये नफ़रत मैंने, जीवन की ख़ुशी को गले लगाई,
इतनी नफ़रत तुमने क्यों की, दिल से कभी इज़्ज़त ना दी,
फिर भी मेरा दिल है मासूम, तुमसे कभी नफ़रत ना की.
तू भी अब नफ़रत को भूल, मेरी अच्छाइयों को दिल से लगा,
ये नफ़रत कभी क्या काम में आई, जिसने मुझे सदा रुलाई,
नफ़रत से क्या कभी ख़ुशी मिली, जीवन में प्रेम संग अच्छा,
तू भी जी ले अपनों के संग, दिल करे मेरी यही छोटी सी दुआ.
कुणाल कुमार