जीवन सुख की कामना लिए, तरसे शांति की खोज में,
जी लू ज़िंदगी जैसे अश्वथमा, जी रहा संवेदना को तरसे,
कठिन पथ पर दुःख भरे काँटे, हंस कर बढ़ चलु लक्ष्य पे,
संवेदना की ललक लिए, इंतज़ार किसी अपने का मन से,
क्या ख़ाक ख़ुशी मिली मुझे, जब संवेदना ना हो रिश्ते में,
संग संग जीने का प्रण लिए, मैं जो बंधा अपने वचनो में,
जी लूँगा जीवन प्यारा, हंस कर हर ग़म छिपा अपने संग,
बस एक गुज़ारिश छोटी सी, बस दो साथ प्यार के संग,
क्या लौटा सकती हो वो पल, जिस पल टूटा दिल मेरा,
संग चलने को क़ीमत चुकाई, जो तोड़ रिश्ते अपनो से,
अब प्यार की उम्मीद नहीं, बस जी रहा सिर्फ़ अपने लिए,
अपने सब छूटे पथ पे पीछे, खोज में भटकूँ किसी अपने के,
जीवन की इस रूप का, उम्मीद ना कभी था मन में,
तेरी कटु वाणी को अपना, पी रहा इस औषद को,
जीने की उम्मीद लिए, खोजूँ उसे जो हंश सके संग,
मेरे मन की व्यथा समझ, जी सके मेरे संवेदना के संग.
कुणाल कुमार