आईना दिखाए मुझे जीवन का चेहरा,
दिखाए चेहरे में छिपा हर भाव का रंग,
कभी दिखे खिलता ख़ुशी, तो कभी दिखे ग़म का राग,
कभी दिखे खिलता प्यार, कभी बिरह की व्यथा अपार,
कौन सच्चा कौन झूठा, आईना इसकी पहचान बताए,
सच्चे को मिली हर ख़ुशी, झूठा जिए दर्द लिए जीवन,
आईना दिखाए मुझे मेरा बचपन, खेल कूद मज़े भरा क्षण,
कभी दिखे मेरी जवानी, जो समेटे मधुर एहसास अपने संग,
वो वक्त भी दिखे अभी, जब ना हो कोई मेरे संग,
अकेलापन भारी पड़े, ना कोई बाँटे सके मेरा दुःख,
आगे दिखे बुढ़ापे की पीड़ा, लगे जीवन सिर्फ़ सुनसान,
जीने की अब ईक्षा नहीं, फिर भी निकले ना मेरा प्राण.
कुणाल कुमार