उल्टा बंदर … क्रमागत

उल्टा बंदर ने सूझ दिखाई, संग मालिक के पुँछ हिलाई,
छोड़ अब सत्ता का लोभ, जा बैठा वो मालिक के गोद,

वफ़ादारी की दी दुहाई, पुरानी याद मालिक को आई,
उसकी उल्टी चाल को देख, मालिक भी ने उसे  गले लगाई,

संग मिले सब होकर एक, बढ़ चले करने को खेल, 
बंदर अब नाच दिखा, विपक्ष के नेताओ को लुभा,

संग मिल देखे सब ये खेल, बंदर के संग जो हो गए मेल,
मिलजुल सबने ज़ोर लगाई, कुर्सी पाने की लालच आई, 

राज पाने उत्सुक ये नेता, जाने कब  नीति खो दी, 
राजनीति की बैंड बजाई, इस बैंड पे नाचे मेरा बंदर,

मेरा बंदर क्या जाने, की आगे कैसे घड़ी है उसकी,
सोचे वो घड़ी है उसकी, पर समय कभी हुआ अपना, 

बंदर क्या जाने मादरी का खेल, हुआ वो उसके आगे फेल,
मादरी जो सोचा मन में, किया बंदर को दूर अपने दल से, 

बंदर को ना सत्ता मिली,  ना मिला उसको दल का साथ,
एक अकेला बेचारा बंदर, रो रो कर हो गया बड़ा बेहाल,

सब समय का खेला है, इसपे जो नाचे  सब,
बंदर सा बन जाए, कूदे सभी अपने सपने  लिए.

कुणाल कुमार 

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